Wednesday 6 February 2013

चीरहरण

rape by KHL-VRT Photography.आज समाचारपत्र में एक खबर पढ़ी कि नई दिल्ली में एक लड़की के साथ दुष्कर्म में असफल रहने पर उसके मुख में राड डालकर उसे मारने की असफल कोशिश की गई ! एक और दामिनी जीवन और मौत के संघर्ष में फंसी पड़ी है !

प्रश्न यह है की अगर वह लड़की बच जाती है तो या मर जाती है तो क्या होगा?

क्या फिर से धरना प्रदर्शन या फिर मोमबत्ती से श्रद्धांजलि प्रदान की जायेगी या फिर हमें अपने हक के लिए फिर से कानून से कानून की भीख माँगनी पड़ेगी ! कानून फिर से कानून लागू करने के लिए जाँच के नाम का सहारा लेगा ! और हम फिर से अपनी आत्मा को छलनी होते हुए देखेंगे !

मुझे यह समझ में नहीं आता है की दुष्कर्म एक तात्कालिक मानसिक एवं शारीरिक क्रिया है या यह लोगों के खून में घुल गया है !  क्या इसके बिना एक  पुरुष रह नहीं पा रहा है ! जहाँ एक महिला, एकांत स्थान व उपलब्ध सहज परिस्थितियां देखी नहीं कि जानवर बन जाता है !

इसमें दोष किसका है ? क्या बालक जो आगे चलकर पुरुष बनेगा उसको जन्म देकर तमाम कठिनाईयों को सहकर उसका पालन पोषण करने वाली माँ का या फिर तथाकथित शारीरिक बल का जो उसी माँ की बदौलत मिला है जो प्रारंभिक अवस्था में एक स्त्री ही थी , बहन द्वारा प्यार व सम्मान मिला जिसकी बदौलत वह स्त्री की महिमा को जान पाया !

 एक स्त्री के रूप में पत्नी मिली जिसने अपनी रचनात्मक  अभिव्यक्ति व असीम प्रेम से उसको परिपूर्ण किया उसी स्त्री के विभिन्न रूप को अकेला पाकर अचानक वह इन्सान हैवान कैसे बन जाता है !   उसे क्या लगता है की क्या वह तब रुकेगा जब माँ के रूप में स्त्री उसे जन्म न देकर उसके लिंग का पता लगाकर उसे गर्भ में ही मार डालेगी? क्या करेगी ऐसे शक्स को जन्म देकर जो  उसके ही अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाये !

पहले महिलायें दहेज़ की वजह से स्त्री भ्रूण की गर्भ में ही हत्या करने पर मजबूर थी पर अब शायद आजकल जो घटनाएँ हो रही है उसकी वजह से अब वो दिन दूर नहीं जब वो बालक भ्रूण को गर्भ में ही मारने के लिए मजबूर हो जाएँगी ! क्यूँ बांधेगी बहन अपने उस पुरुष रूपी भाई को राखी जो किसी और की बहन को अपनी हवस का शिकार बनाये और न बना पाने पर उसको तिल-तिल कर मरने के लिए छोड़ दे ! क्यूं कोई पत्नी अपने पति को परमेश्वर का दर्जा  देगी और सात जन्म तक साथ रहने की ईश्वर से प्रार्थना करेगी जब उसे पता है की वो भगवान तो क्या इन्सान भी कहलाने लायक नहीं है !

इसलिए हे तथाकथित रूप से बलवान कहलाने वाले पुरुष रुपी दानवों से में यह कहना चाहती हूँ की स्त्री की मन मर्यादा पर जब-जब आंच आई है तब तब युद्ध हुए है ! इसका इतिहास गवाह है ! चाहे रामायण हो या महाभारत ! इसलिए स्त्री के सब्र का अब इम्तिहान न लिया जाये वर्ना आने वाली प्रलय को कोई रोक नहीं पायेगा !

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