Friday 14 September 2012

बीमारी से खतरनाक है उसका इलाज


एक बीमारी जिसका इलाज बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक है उसका नाम है- कैंसर। इसके नाम का आतंक ऐसा  है कि जो भी सुनता है वह कुछ भी कहने में अपने को असमर्थ पाता है। मुझे दुर्भाग्यवश इस दैत्य रूपी बीमारी का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि मेरी मां को 75 वर्ष की अवस्था में इस बीमारी ने अपने पंजों में जकड़ लिया। जब इस बीमारी के विशेषणों से  साक्षात्कार हुआ तो इसकी भयंकरता का अंदाजा हुआ। कैसे ये बीमारी तिल-तिलकर इंसान को मारती है और कैसे तिल-तिलकर इंसान को जिंदा रखती है जब तक इसका समय पूरा नहीं होता है।

मेरी मां को गले का कैंसर हुआ और ’लास्ट स्टेज’ बतायी गयी। फ़िर शुरु हुआ जांचों का सिलसिला। उसके बाद बताया गया कि मात्र कीमियोथेरेपी ही इसका एकमात्र इलाज है, वो भी बिना किसी गारण्टी के।  इसके बाद मैंने अपने सामान्य ज्ञान को बदलना शुरु किया। नेट पर सर्च किया और नामुराद कीमियोथेरेपी के बारे में पढ़ना शुरु किया तो पता चला कि बीमारी से ज्यादा खतरनाक इस बीमारी का इलाज है। हे भगवान! इतने सारे साइड इफ़ेक्ट’ कि पढ़कर लगा कि ’साइड इफ़ेक्ट’ तो मुख्य बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक है। कैसे इलाज होगा? कौन सा ऐसा साइड इफ़ेक्ट’  है जो नहीं हो सकता है। उल्टी,दस्त,आमाशय में संक्रमण, किडनी में संक्रमण। और हां सबसे पहला बाल झड़ना। और ये बीमारी किसी के साथ भेदभाव नहीं करती है। न स्त्री-पुरुष, न ही उम्र का लिहाज। कहां-कहां ये कैंसर नहीं होता। मतलब हर कहीं हो सकता है।

जिस किसी के भी बाल 2 इंच के दिखायी दिये अस्पताल में तो यही समझ में आया कि बेचारा या बेचारी कीमियोथेरेपी का शिकार है। मतलब ये एक सामान्य लक्षण है कि वो कैंसर का शिकार है और कीमियोथेरेपी करवा चुका है। इस कीमियोथेरेपी के इतने साइड इफ़ेक्ट’ हैं कि यदि बेचारा इन सारे साइड इफ़ेक्ट’ को झेल गया तभी इस बीमारी के पंजों से छूट सकता है वर्ना बीमारी से तो बाद में मरेगा, साइड इफ़ेक्ट से पहले।  यहां तक कि लीवर फ़ट सकता है। किडनी फ़ेल हो सकती है। ब्रेन हैमरेज हो सकता है। लकवा मार सकता है। और हां कोमा में भी जा सकता है। अब आप बताओ कि बीमारी खतरनाक है या इसका  इलाज। उस पर तुर्रा यह कि  डॉक्टर कोई भी पोजीशन भी क्लीयर करने को तैयार नहीं है। यानि कि आप इतने असहाय हो जाते हैं कि आप कुछ कर नहीं सकते सिवाय कि मरीज के साथ आप भी तिल-तिलकर जिया कीजिये क्योंकि आप अपने मरीज से प्यार जो करते हैं।और आप सदैव एक भय से ग्रस्त रहते हैं वो अलग है। 
मैं भी इस समय इसी दौर से गुजर रही हूं। कोई भी कुछ भी गारण्टी से कहने को तैयार नहीं। मेरी मां मुझसे मासूमियत से पूछती रहती है- मैं ठीक तो हो जाउंगी? मैं उन्हें क्या जबाब दूं?  कीमियोथेरेपी का इलाज चल रहा है। मैं हमेशा एक आशंका से ग्रस्त रहती हूं। मां को क्या बताऊं और कैसे बताऊं? उनकी हरकतें बच्चों जैसी मासूम हो गयीं हैं।

1 comment:

  1. बढ़िया पोस्ट है सोनिया जी. आपकी माता जी जल्द स्वस्थ हों, ऐसी कामना करती हूँ. ब्लॉग पर नियमित लिखती रहें. ब्लॉग-दुनिया में आपका स्वागत है :)

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