Monday 6 August 2012

अनसुलझा अंत

एक विशुद्ध प्रेम कहानी जिसका सुखद अंत हो सकता था, दुखद परिणति को प्राप्त हुई। क्या इसके लिये वाकई वाकई फ़िजा ही जिम्मेदार है? क्या नारियां पुरुषों की इच्छानुसार ही उनके लिये समर्पित होने को बाध्य हैं?  क्या पुरुष सिर्फ़ नारी को अपने अनुसार इस्तेमाल करने के लिये बाध्य है? जब इस्तेमाल करने योग्य न बचें तो उन्हें मरवा दिया जाये। चाहे मधुमिता शुक्ला हो या भंवरी देवी, चाहे गीतिका हो या फ़िजा । ताकत का इस्तेमाल पहले प्रेम पाने के लिये किया जाता था ।

लोग अपनी प्रेयसी को पाने के लिये कुछ भी कर गुजरने के लिये तैयार रहते थे। लेकिन उपभोक्तावाद के इस दौर में नारियों को इस्तेमाल  करके या न कर पाने पर तेजाब डाल दो या फ़िर कब्जे से बाहर जायें तो मरवा दो -जैसा गोपाल कांडा ने किया। एक व्यक्ति जो एक  विशुद्ध प्रेम के लिये अपना घर बार, परिवार, कैरियर यहां तक कि धर्म तक छोड़ देता है वही  व्यक्ति अपनी प्रेयसी को कत्ल तक करवा सकता है।  क्या यही प्रेम का सच्चा प्रतिनिधित्व है?

इस तरह तो नारियां पुरुषों को कभी भी प्रेम नहीं कर पायेंगी? क्या नारियों के प्रेम का यही प्रतिदान है?.किसी भी प्रेम में कोई भी एक दोषी नही होता है लेकिन नुकसान पहुंचाने वाली घटनाओं में अधिकतर में पुरुष ही दोषी पाये जाते हैं।

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